मेरे पिछे मेरे लिए रोते है वो अब कितना जुठ बोलते है वो ओर मेरे बार-बार इज़हार पर गर्दन हिलाते अच्छे लगते है वो ये कुछ खत वापस कर रहा हु अब खुद ही जलने लगते है वो मेरे ही शेर मेरे खिलाफ हो गए लगता है अब लिखने लगे है वो मेने रेशमके पन्नो पे अल्फ़ाज़ लिखे पर अब खादी पहनने लगे है वो लगता है फिरसे खुदा महेरबान होंगे फिरसे उस ताबीजको पहनने लगे है वो आगये दुबारा मुलाकात वाली गलीमें लगता है फिरसे फकीर होने लगे है वो 'नाजुक' खेल किस किस को दिखाऊ लिखता हु जिस पन्ने पर हसने लगे है