सभी दिशाओं में बसंत के उल्लास का माहौल है मगर नेताजी बेहद उदास है पहली बार चुप है पहली बार गंभीर दिन-रात भीड़ के खेल रहे रहनेवाले नेताजी आज निफ्टी अकेले हैं सब कुछ बदला-बदला सा है किंतु देर से बंगले के दरवाजे पर निगाहें गड़ाए बैठे हैं कोई आ ही नहीं रहा जरा सी आहट होती है तो लगता है कहीं से वह तो नहीं पर कोई नहीं होता एक चुनाव क्या हारे जीवन ही बदल गया कल तक देखा भूत नेता आज भूतपूर्व हो गया समय समय की बात है आज वह उस जनता के बिरहा में भी कुल थे जो कभी उनके बिरहा होने पर बड़े-बड़े महाकावे लिख देते थे वह सुबह से ही उन लोगों का इंतजार कर रहे थे जिन्होंने उन्हें प्रतीक्षा कर जीवन को सफल बनाया था महज एक पखवाड़े में ही समय कितना बदल गया है अभी कल की ही बात है वह किसी से बात कर लेते थे तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगती थी किस से बन जाते थे मैं पुरानी यादों में खो गए किंतु अच्छी होली रहती थी सुबह उठते थे अखबारी विभाग की ओर से ठंडाई की बाल्टी तैयार कर मिलती थी खाद विभाग की ओर से मिठाइयों की कतार सजी रहती थी प्रशासन गुलाल की को ज्यादा था उन्हें आश्चर्य लोग क्यों नहीं आए उन्होंने तो हमेशा स्वामी के प्रवचन पर शक होता था आदमी अकेला आता है अकेला ही जाता है उनके साथ तो भीड़ जाएगी पर आज उनके दिल में दर्द उठे लगा विश्वास नहीं होता कि कहीं रास्ते तो नहीं भटक गए मैं बाहर चौराहे तक चक्कर भी लगा रहा है कोई नहीं मिला सारा घर उदास है ना जाने क्या होगा पत्नी का समय कैसे कटेगा ना जाने कितनी महिला समितियों के अध्यक्ष थी ©Ek villain #हारे हुए नेता का दर्द #WorldPoetryDay