लो दीवाली आ गई! हर साल दीवाली आती है और साल दर साल मनुष्य की बुद्धि को काली कर जाती है। उसकी बुद्धि दिन-ब-दिन विकृत हुई है! दुर्गन्धित हुई है! उसके भीतर का राम कण-कण मिट रहा है और रावण मन-मन बढ़ रहा है! उसके भीतर का राम तिल-तिल मिट रहा है और रावण खिल-खिल कर बढ़ रहा है! चारों ओर अँधेरा सबको दबोचता जा रहा है और उजाला न जाने कहाँ दुबकता जा रहा है? इस दस मुँही अँधेरे, भारी रावण को तोड़ने के लिए चाहिए 'मर्यादा'और'पुरुषार्थ'वाला छोटा सा उजला ' राम' ©अंजलि जैन #रोशनी के लिए....#०४.१०.२० #raindrops