क्या पसंद है:- कितना तो सोचा समझा कितना तो परखा मैने, पर फिर भी मैं यह जान न पाया आखिर उनको क्या पसंद है। कभी तो सोचू मैं खिल जाऊं उसकी हर मुस्कान में, कभी तो सोचू हल बन जाऊं उसकी हर एक मुश्किल का, पर फिर भी मैं जान न पाया, आखिर उनको क्या पसंद है। फिर मैं सोचा वह उड़ता पँछी कहाँ पिंजड़े में लाऊंँगा, पर इतना जो मुझ में प्रेम भरा कैसे उसको दिखलाऊंगा, ढोते-ढोते क्या मैं इसको स्वर्ग लोक ले जाऊंगा, फिर से मैंने जाना परखा, खूब टटोला अंतर्मन में..... सोचा मुश्किल का हल नहीं तो Hint बन कर रह जाऊंगा, मुख को विराम देकर देखा, तब नैना दौड़े इधर-उधर, खुद के बस में ना रहते हैं, जाने क्या क्या ये करते हैं, पर आज गजब सी हालत है अलबेला सा आलम है, पहले जो मुखड़े पर मरते थे, आज जूती भी Zoom-In करते हैं... खोज अभी भी जारी है आखिर उनको क्या पसंद है!