कलम उठाऊँ तो नाम तुम्हारा लिखती हूं आंखों में छिपाकर अपने तस्वीर तुम्हारा रखती हूं सो जाऊं अगर तो ख़्वाब तुम्हारे आते हैं जगी भी रहूं तो तुम्हारे ही खयालों में गुम रहती हूं तुम ऐसे मुझमें शामिल हो जैसे मैं कविता कोई और तुम उसका सार हो जैसे मैं शनिवार की रात और तुम इतवार हो जैसे मैं सुबह की चाय और तुम अखबार हो जैसे मैं स्त्री और तुम मेरा श्रृंगार हो जैसे...... तुम....(♡‿♡) (^‿^) . . .