आज भी शहर की गलियों में उसका इंतज़ार है, आज भी मोहब्बत उससे बे-शुमार है। पहले यह शहर इतना सुनसान तो ना लगता था, उसके जाने से जैसे दिल पुर-इज़्तिरार है । यह शहर भी पुकारता है उस दिल-ए-माशूक़ को, रूह भी जैसे उसकी बेवफ़ाई से ना-चार है । रंज-ए-फ़ुर्क़त से 'अक्स', रूह-ओ-दिल ख़फ़ा तो है, पर आज भी मोहब्बत पर ऐतबार है। ©Akshita Gupta (Ghazal) #शहर 🏙️ ____________ बे-शुमार = countless /numberless दिल पुर-इज़्तिरार = heart full of restlessness दिल-ए-माशूक़ = heart of beloved ना-चार = helpless रंज-ए-फ़ुर्क़त = Sorrow of separation रूह-ओ-दिल = soul and heart