"मुहब्बत कोई दिखावे की चीज़ नहीं है। ये तो बस महसूस की जाती है। ज़रूरी नहीं कि हम किसी को बोलकर ही अपनी मुहब्बत जतायें। मुहब्बत तौली नहीं जा सकती कि कम और ज़्यादा हों, ये तो हमारी किसी के प्रति फ़ीलिंग्ज़ का नाम है। मुहब्बत घंटों एक-दूसरे से फ़ोन या व्हाट्सऐप पर बात करने का नाम भी नहीं है। मुहब्बत तो एक-दूसरे की जज़्बात का ख़्याल रखने का नाम है। एक दूसरे को समझने का नाम है। फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक-दूसरे की फ़ोटोज़ पर लाइक और कमेंट करने का नाम भी मुहब्बत नहीं है।"
वह ये सब बड़े ध्यानपूर्वक मुझे समझा रही थी। मैं भी बड़ी संजीदगी से सुन रहा था। अब मेरा दिल सीक्रेटली उससे बातें करने लगा।
"तुम ने जो कहा मेरी मुहब्बत भी तो बिल्कुल वैसी ही है। मैंने भी तो तुम्हारे लिये अपनी मुहब्बत का दिखावा नहीं किया। मैंने इससे पहले इज़हार-ए-मुहब्बत इसलिये नहीं की कि कहीं तुम मेरे लिये इज़हार-ए-नफ़रत न कर दो। डरता हूँ न तुम्हें खोने से। मेरी जिस्म की रूह अब तुम ही तो हो। मैंने भी तो कभी तुम्हें व्हाट्सएप या फ़ेसबुक पर मुझसे चैट करने केलिये ज़िद नहीं की। तुम्हारी अनुपस्थिति ने मुझे कभी परेशान नहीं किया, क्योंकि मैं तुम्हें हमेशा अपने क़रीब पाता हूँ। मैं हमेशा तुम्हें महसूस करता हूँ।"