हां मैं अधूरी हूँ कहां ढूंढ पाइ हूं खुद में खुद को मैं कस्तूरी हूं..... मैं जीती रही हूं पर सुनती कहां हूं खुद की सबके संग बह जाती हूं सबके रंग रंग जाती हूं कभी लौट कहां पाती हूँ ठहर कहां जाती हूं बंध जाती हूं बेड़ियों से जंजीरों से बाधाओं से बंधनों से खोखले रिवाजों से दबाने वाली आवाजों से राह में पड़ी मुश्किलों से कहां कुचल पाती हूं आगे निकल पाती हूं कहां जी पाती हूं अपनी सोच बस सोचती हूं हां मैं अधूरी हूं ....कहां ढूंढ पाइ हूँ मैं कस्तूरी हूँ। प्रीति #कस्तूरी#हिरण#नाभि#सुगंध #अहसास#yqdidi