//कबड्डी// भोर भये उठते ही आज, कंबल सिरहाने रख दिया । इक तूफ़ान सा अंदर समेटे, पन्नों को सम्हाल लिया । निकल पड़े अनभिज्ञ राह पर, कुछ शब्दों से लड़ने ।।