कई बार हम सब जानकर भी उस भंवर में फंस जाते हैं हमें पता है यह भंवर हमें डूबा ले जाएगा,,,,, कई बार हम सोचते हैं कि यह बात अब हम अपने जहन में नहीं लाएंगे, फिर ना जाने हम किस के वशीभूत होकर उन्हीं बातों में घिर जाते,,,, कई बार हम खुद को शांत करने के चक्कर में और बेचैन हो जाते हैं,,, कई बार हमें अपनी कमजोरी मालूम होते हुए भी, 'हम खुद ही दुखती नस में हाथ रख देते हैं,,,, कई बार हम धागे सुलझाने के इरादे से और उलझन में फंस जाते हैं,,, जब हमारे चाहने से कुछ नहीं होता तो, डाल देते हैं फिर ऊपर वाले के हाथ में खुद को,,,,,, 'ज़माना क्या दुश्मन होगा हमारा,, हम खुद ही खुद के दुश्मन हो जाते हैं,,,,,, कोई क्या चोट पहुंचाएगा हमें,, हम खुद ही खुद को चोट पहुंचा जाते हैं,,,,,, *पुराने जमाने में तो आदिवासी एक दूसरे को आहत करने के लिए तलवार भाले तीर कमान सब चलाते थे,