खामोश ही सही, पर रहों आसपास बनकर। बिखर जाओ भले, पर रहो अहसास बनकर। दूर जाने से किसने रोका है, ठहर जाओ बस कुछ याद बनकर। रिश्तों की कुछ लकीर सी उलझी, उभर परी है एक सवाल बनकर। रोका हाथों से बहुत हमने, बह ही गये वो जज्बात बनकर। गुम से हो गये वो बोझिल नींदों में, बैठे हो क्यों है फिर ख्वाब बन कर ? ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️ खामोश ही सही पर रहो आसपास बनकर...✍️