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पिता के हिस्से में आई नहीं छांव हमेशा ही रहे उसक

पिता के हिस्से में आई नहीं छांव 
हमेशा ही रहे  उसके धूप में पांव! 

बोल उसके सख्त और दिल नर्म
रूके ना कभी  करता जाए कर्म! 

गोद में बैठा कर जो बड़ा बनाता
बड़ा होने के बाद पर्दा सिखाता है! 

खुद खेल में हार कर भी वो अपनी
संतान  को  जीतना  सिखाता  है ! 

मैले कपड़े पहन कर खुद अपने 
बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करवाता है! 

गुजर जाते है पिता जिनके बचपन 
में माँ ही उसका पिता कहलाता है! 

कर्ज का बोझ  सिर  पर  उठाकर
चुपचाप देर  रात  बाद सो जाता है! 

मां रूठ कर कभी चली जाए बाहर
अपने हाथों से बना खाना खिलाता है! 

सुशील कर्जदार रहेगा पिता का क्योंकि 
उसके आशीर्वाद से जमाना मुस्कुराता है!  पिता के हिस्से में आई नहीं छांव 
हमेशा ही रहे  उसके धूप में पांव! 

बोल उसके सख्त और दिल नर्म
रूके ना कभी  करता जाए कर्म! 

गोद में बैठा कर जो बड़ा बनाता
बड़ा होने के बाद पर्दा सिखाता है!
पिता के हिस्से में आई नहीं छांव 
हमेशा ही रहे  उसके धूप में पांव! 

बोल उसके सख्त और दिल नर्म
रूके ना कभी  करता जाए कर्म! 

गोद में बैठा कर जो बड़ा बनाता
बड़ा होने के बाद पर्दा सिखाता है! 

खुद खेल में हार कर भी वो अपनी
संतान  को  जीतना  सिखाता  है ! 

मैले कपड़े पहन कर खुद अपने 
बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करवाता है! 

गुजर जाते है पिता जिनके बचपन 
में माँ ही उसका पिता कहलाता है! 

कर्ज का बोझ  सिर  पर  उठाकर
चुपचाप देर  रात  बाद सो जाता है! 

मां रूठ कर कभी चली जाए बाहर
अपने हाथों से बना खाना खिलाता है! 

सुशील कर्जदार रहेगा पिता का क्योंकि 
उसके आशीर्वाद से जमाना मुस्कुराता है!  पिता के हिस्से में आई नहीं छांव 
हमेशा ही रहे  उसके धूप में पांव! 

बोल उसके सख्त और दिल नर्म
रूके ना कभी  करता जाए कर्म! 

गोद में बैठा कर जो बड़ा बनाता
बड़ा होने के बाद पर्दा सिखाता है!