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शहर की आबो हवा से जब उब जाया कर l कुछ समय

शहर   की  आबो हवा   से  जब  उब  जाया  कर l
कुछ समय निकाल कर अपने गाँव हो आया कर ll

कोई समझदारी नही है ज्यादा समझदार बनने में, 
बच्चे जब ज़िद करे तो तू भी बच्चा बन जाया कर l

जिस कुएं से लोग पानी पीते रहे, वो भरा रहता है, 
तू  भी  वक़्त  बेवक़्त  औरों  के  काम आया कर l

सुगंध जब गायब होने लगे जीवन की बगिया से, 
मुरझाये   हुए   रिश्तों   को  पानी  दे  आया  कर l

जो वक़्त के साथ नही बदलते वो बदल दिये जाते है, 
ज़िंदगी के हर बदलाव को हँस कर गले लगाया कर l

कामयाबी की उड़ान में ज़मीन से रिश्ता जब टूटता सा लगे, 
नज़दीक  के  किसी कब्रिस्तान का चक्कर लगा आया कर l

अपनी  लड़ाई  आखिर  सबको खुद ही लड़नी पड़ती है, 
अपने बच्चों को तूफानो से लड़ने के हुनर सिखाया कर ll

©Dimple Kumar
  #PhylosophyOfLife