प्रेम क्या है इसे दिखाने की जरूरत नहीं यह ह्रदय से स्वता ही प्रकट होता है प्रेम अविरल बहती हुई सरिता है जिसे कोई बांध कोई पत्थर कोई विपदा कोई बाधा नहीं रोक सकती,,,,,, निस्वार्थ प्रेम हमेशा समर्पित हो जाता है उस झरने की तरह जिसका जल कभी अशुद्ध और बासी नहीं होता प्रेम में जरूरी नहीं कि हमेशा साथ हो पर ह्रदय में हमेशा एक मीठी सुगंध की अनुभूति बनके प्रेमी प्रेमिका रहते हैं जब हृदय में प्रेम प्रकट हो जाता है उससे कभी भी घृणा नहीं कर पाते उसके लिए हमेशा समर्पण भाव उसकी सलामती दुआओं में उसको याद करना चाहे कहीं भी हो