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याद ग़ुबार बनके दिल से निकली, सीने में ज्वार बन के


याद ग़ुबार बनके दिल से निकली,
सीने में ज्वार बन के अटकी,
गले में दर्द बन के ठहरी,
और अचानक..
आंखों के रास्ते बहने लगी! चुगलखोर आंसू!
यादें भी अजीब होती हैं बेशरम सी, कितना भी माना करो चली आती हैं कहीं भी ना वक़्त देखती हैं ना माहौल..कभी दिल में हूक सी उठती हैं, कभी कंठ में ठहर जाती हैं दर्द देने लगता है गला पर इन्हें क्या, मर्ज़ी की मालकिन हैं आंखों में पहुंच जाएगी और कूद लगा देगी वहां से टप-टप करके!
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याद ग़ुबार बनके दिल से निकली,
सीने में ज्वार बन के अटकी,
गले में दर्द बन के ठहरी,
और अचानक..
आंखों के रास्ते बहने लगी! चुगलखोर आंसू!
यादें भी अजीब होती हैं बेशरम सी, कितना भी माना करो चली आती हैं कहीं भी ना वक़्त देखती हैं ना माहौल..कभी दिल में हूक सी उठती हैं, कभी कंठ में ठहर जाती हैं दर्द देने लगता है गला पर इन्हें क्या, मर्ज़ी की मालकिन हैं आंखों में पहुंच जाएगी और कूद लगा देगी वहां से टप-टप करके!
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