।। ओ३म् ।। अ॒र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय। वाचं॒ विष्णु॒ꣳ सर॑स्वती सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॒ꣳ स्वाहा॑ ॥ पद पाठ अ॒र्य्य॒मण॑म्। बृह॒स्पति॑म्। इन्द्र॑म्। दाना॑य। चो॒द॒य॒। वाच॑म्। विष्णु॑म्। सर॑स्वतीम्। स॒वि॒तार॑म्। च॒। वा॒जिन॑म्। स्वाहा॑ ॥ हे राजन् ! आप (स्वाहा) सत्यनीति से (दानाय) विद्यादि दान के लिये (अर्यमणम्) पक्षपातरहित न्याय करने (बृहस्पतिम्) सब विद्याओं को पढ़ाने (इन्द्रम्) बड़े ऐश्वर्य्ययुक्त (वाचम्) वेदवाणी (विष्णुम्) सब के अधिष्ठाता (सवितारम्) वेदविद्या तथा सब ऐश्वर्य उत्पन्न करने (वाजिनम्) अच्छे बल वेग से युक्त शूरवीर और (सरस्वतीम्) बहुत प्रकार वेदादि शास्त्र विज्ञानयुक्त पढ़ानेवाली विदुषी स्त्री को अच्छे कर्मों में (चोदय) सदा प्रेरणा किया कीजिये ॥ Hey Rajan! You (Swāha) from truthfulness (Danāya) Vidyādi for charity (A्यमryānam) to do unbiased justice (Brihaspatiam) Teach all the disciplines (Indram), the great God-born (Vacham) Vedvāni (Vishnu), the founder of all (Savitaram) to produce Vedavidya and all the greatness. (Vajinam) A knight with good force and (Saraswatim), a woman who teaches Vedadi Shastra science, always inspire (Chodaya) in good deeds. ( यजुर्वेद ९.२७ ) #यजुर्वेद #वेद #राजा #स्त्री