गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में #NojotoQuote