कभी रो देती, कभी हंसने लगती, विडंबना भरे हालातों पर, जिसे दुनिया समझा, वही दुनियादारी का पाठ पढ़ाने बैठ गया (Read in caption) ज़माने में वो चंद लोग मिलें थे मुझे, समझने लगे थे वो मेरी चुप्पी को सहम के बैठी रहती थी, घर के किसी कमरे मे कभी, आज उन्हीं की बदौलत, मैं अब कुछ कह सुन लेती हूँ खींच कर लाए थे मुझे हज़ारों लोगों के बीच,इसी उम्मीद पे कि शायद थोड़ा हँस बोल लूँ