ज़िन्दगी की लौ से ये सांसें पिघलती हैं और एक एक बूंद फ़िर माज़ी में भरती हैं जब आख़िरी सिरा भी जल के ख़ाक होता है तो ये घड़ा माज़ी का बन तैयार होता है कोई वज़ूद ना कोई सामान रहता है माज़ी के हर घड़े में बस निशान रहता है फिर इस निशां पे भी समय का वार होता है हर शख़्स गुमनामी का यूँ शिकार होता है #YQdidi #अंजलिउवाच #ज़िन्दगी #माज़ी #गुमनामी #वज़ूद