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सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे , जीने के

सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे , जीने के सलीके जिन्होंने विन मोल सिखाए थे।
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बचपन में कंधे पर तो जवानी में संग बिठाए थे , एक वही तो थे जिन्होंने सच्चे गुर सिखाए थे।
सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे।।
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हर पिता जो देता अपने बेटे को , उससे कुछ अलग स्वप्न दिखाए थे।
कृष्ण प्रेम के पथ पर चलने के , संदेश उन्होंने सुनाए थे।
जीने के सलीके बिन मोल उन्होंने सिखाए थे।।
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हर डाँट में छुपा प्रेम उनका , शायद हम ही न जान पाए थे।
पिता के उन अमूल्य वचनों को , शायद ही जीवन में उतार पाए थे।
जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।।
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आनंद से भरा जीवन मेरा , दुःखों को कहाँ हम जान पाए थे।
दीवार बनकर पिता ने उनको , दूर हमसे भगाए थे।
जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।।
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फिर अचानक निराशा के बारिद , हर ओर घनघोर छाए थे।
एक पल हम खुदको , पिता से दूर उनसे पाए थे।
जीवन जीने के सलीके बिन मोल सिखाए थे।।
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मन हताश था  , और खुद को अकेला पाए थे
फिर भी उनकी सीख को हम , अपने जीवन में बिठाए थे
सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे मेरे पिता
सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे , जीने के सलीके जिन्होंने विन मोल सिखाए थे।
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बचपन में कंधे पर तो जवानी में संग बिठाए थे , एक वही तो थे जिन्होंने सच्चे गुर सिखाए थे।
सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे।।
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हर पिता जो देता अपने बेटे को , उससे कुछ अलग स्वप्न दिखाए थे।
कृष्ण प्रेम के पथ पर चलने के , संदेश उन्होंने सुनाए थे।
जीने के सलीके बिन मोल उन्होंने सिखाए थे।।
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हर डाँट में छुपा प्रेम उनका , शायद हम ही न जान पाए थे।
पिता के उन अमूल्य वचनों को , शायद ही जीवन में उतार पाए थे।
जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।।
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आनंद से भरा जीवन मेरा , दुःखों को कहाँ हम जान पाए थे।
दीवार बनकर पिता ने उनको , दूर हमसे भगाए थे।
जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।।
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फिर अचानक निराशा के बारिद , हर ओर घनघोर छाए थे।
एक पल हम खुदको , पिता से दूर उनसे पाए थे।
जीवन जीने के सलीके बिन मोल सिखाए थे।।
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मन हताश था  , और खुद को अकेला पाए थे
फिर भी उनकी सीख को हम , अपने जीवन में बिठाए थे
सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे मेरे पिता