सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे , जीने के सलीके जिन्होंने विन मोल सिखाए थे। . बचपन में कंधे पर तो जवानी में संग बिठाए थे , एक वही तो थे जिन्होंने सच्चे गुर सिखाए थे। सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे।। . हर पिता जो देता अपने बेटे को , उससे कुछ अलग स्वप्न दिखाए थे। कृष्ण प्रेम के पथ पर चलने के , संदेश उन्होंने सुनाए थे। जीने के सलीके बिन मोल उन्होंने सिखाए थे।। . हर डाँट में छुपा प्रेम उनका , शायद हम ही न जान पाए थे। पिता के उन अमूल्य वचनों को , शायद ही जीवन में उतार पाए थे। जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।। . आनंद से भरा जीवन मेरा , दुःखों को कहाँ हम जान पाए थे। दीवार बनकर पिता ने उनको , दूर हमसे भगाए थे। जीने के सलीके उन्होंने बिन मोल सिखाए थे।। . फिर अचानक निराशा के बारिद , हर ओर घनघोर छाए थे। एक पल हम खुदको , पिता से दूर उनसे पाए थे। जीवन जीने के सलीके बिन मोल सिखाए थे।। . मन हताश था , और खुद को अकेला पाए थे फिर भी उनकी सीख को हम , अपने जीवन में बिठाए थे सोचता हूँ वो लम्हे जो पिता संग बिताए थे मेरे पिता