मंदिर-ओ-मस्जिद न गिरजा न शिवाला चाहिए, भूख से बेहाल लोगों को निवाला चाहिए। ज़ुल्मतों को कोसते रहना बहुत आसान है, अपने अपने दम पे थोड़ा सा उजाला चाहिए। जिसको पढ़कर दिल में कोई दर्द मीठा सा उठे, नफ़रतों के दौर में ऐसा रिसाला चाहिए। जंग जब हम लड़ रहे हों बातिल-ओ-नाहक़ से तो, दिल में अपने पारसाई ज़र्फ़ आला चाहिए। हर तरफ़ है झूठ नफ़रत ज़ुल्म मक्कारी फ़रेब, ऐ अंधेरे और कितना रंग काला चाहिए! कुछ दिलों की गंदगी भी साफ़ होती है "अलीम" बस उन्हें अच्छे से कोई धोने वाला चाहिए। #yqaliem #bhukh #zulmat #baatil #ujaala #poverty #aala_zarf ज़ुल्मत - darkness रिसाला - magzine बातिल-ओ-नाहक़ - Falsehood