#OpenPoetry सुबह और हम तुम याद है वो सर्दी की सुबह निकल जाते थे हम दोनों हाथो में हाथ डाले किसी अनजान रास्ते पर फिर जा कर बैठ जाते थे किसी बगीचे के पेड़ के चबूतरे पर तुम मेरा हाथ , हाथो में पकड़े छुपा लेती थी अपनी शॉल के भीतर ताकि असहज ना हो जाएं बाकी लोग बगीचे के भीतर अजीब सा था धड़कनों का हाल दोनों के सीने के भीतर बीन बात के बातें करते दोनों बोलते नहीं थकते थे और लौट आते थे फिर अगली सुबह निकलने को #OpenPoetry