White मैं महक गांव की मिट्टी की छोड़कर शहर चला आया गांव के गहरे रिश्तों को तोड़कर शहर में रिश्ते बनाने चला आया हां........सफ़र गांव से शहर का कुछ मीलों का था लेकिन , फांसला अपनों से बहुत दूर का बना आया मेरा हर कदम अब बड़ रहा था बेशर्मी की ओर..... संस्कारों की दुनिया को स्वार्थ के कफ़न से खुद ही ढक आया था मैं महक गांव की मिट्टी की छोड़कर शहर चला आया था चल रहा था सैंकड़ों की भीड़ में फिर भी अकेला था शहर में गांव के अंधेरों में भी साया था अपनो का इन बड़ी बड़ी इमारतों में खुद ही कैद होने को आया था "ललित" अपनों को छोड़ सबसे बहुत दूर चला आया था। महक गांव की मिट्टी की छोड़ शहर चला आया था!!!! ©Lalit Saxena #महक