उनकी रुसवाइयों के जब सिलसिले बढ़ने लगे थे, हमे खबर थी हम उनके दिल से उतरने लगे थे। जीने का मिल गया होगा कोई और ही बहाना, शायद हम उनपे कुछ ज्यादा ही मरने लगे थे। इज़हार-ए-रुख़सत जरूरी तो नहीं था, हम तो उनकी बेरुखी से ही डरने लगे थे। दोझख में भी जन्नत थी जब तलक मौजूद थे वो, उनके जाते ही जन्नतो में दोझख बनने लगे थे। कोई खता हुई होती तो सुधार भी लेते, हम तो गुनाह-ए-मोहब्बत में जलने लगे थे। जब फन में वफ़ा के माहिर ना थे तो, फिर क्यों वफ़ा के मुखोटों में वो ढलने लगे थे। तय था ना आएंगे इस दिल की बातो में हम फिर कैसे प्यार करने लगे थे। मुखातिब से सच कैसे झूठ लगे हमें, उनके तो झूठ भी सच लगने लगे थे।। रुसवाईयाँ #रुसवाइयाँ #रुख़सत #दोझख #जन्नत #मोहब्बत #प्यार #झूठ #सच #सिलसिले #दिल #वफ़ा #मुखौटा #बेरुख़ी #गुनाह #सच #ग़ज़ल #gazal #NozotoHindi #hindishayri #hindipoetry #hindigazal #urdu #hindiurdu