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नेह बाँटो अगर नेह पाते रहो बाँट-मिलके सभी आप खात



नेह बाँटो अगर नेह पाते रहो
बाँट-मिलके सभी आप खाते रहो

नफ़रतों से भला किसका होता भला
हर तरफ़ प्रेम-खुशबू उड़ाते रहो

रंग केवल अलग एक जैसे सभी
फ़र्क करते नहीं ये जताते रहो

एक सबके ख़ुदा रूप सबके अलग
प्रेम-संदेश सबको सुनाते रहो

पीढ़ियाँ प्यार करना जरा सीख लें
इश्क़ अनमोल है तुम बताते रहो

इश्क़ मज़हब मेरा इश्क़ ईमान है
द्वेष,गुस्सा,जलन को जलाते रहो

दर्द दूजों का तुमको भी महसूस हो
नेक बनकर रहो थाप पाते रहो

धर्म मानव बड़ा और कोई नहीं
क़ौम मानव रहे काम आते रहो

अनवरत नेह-गंगा यूँ बहती रहे
ज़ाम ''निश्छल'' जमन का पिलाते रहो

अनिल कुमार निश्छल 
हमीरपुर, उ0प्र0

©ANIL KUMAR
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