भीड़ में भी होती है महसूस तन्हाई तो सन्नाटों से दोस्ती भी क्यों करे इश्क़ में क़त्ल अपना कर किसी बेवफ़ा के लिए जान सस्ती भी क्यों करे लब-ओ-रुख़सार की चमक थे वो, जो वो ले गये अपने साथ तो अब वो नही झलकती मेरे चेहरे से तो अब उसके साथ जबरदस्ती भी क्यों करे कुसूर तो सारा दिल का था जो दगाबाज़ शख्स से उल्फत कर बैठा था तो अब उसके नाम पर बदनाम मेरी सियाह-बख़्ती भी क्यों करे वही तो थे मेरे पागलपन,छोटी-बड़ी शैतानियाँ और मस्त मलंग रहने की वजह तो अब उनके बिना हम वो मस्ती भी क्यों करे जब आँखों में कैद है धोका खाये हुऐ दिल से बहते अश्कों का सागर तो उसे बहने से रोककर हम भी वो अश्कों से इतनी सख़्ती भी क्यों करे जब कश्ती को चलाने वाला ही उसे डूबता छोड़कर समंदर में कूद गया तो उसके डूबने के लिए दोषी करार इश्क़ की कश्ती भी क्यों करे ♥️ Challenge-620 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।