मां बाप के लाड प्यार में खिलता रहा बचपन, राजकुमारी मुझे बताओ खुश होती थी मन ही मन, चांद तारों की सैर रोज़ कराती थी, मां जब लोरी गा सुनाती थी, वो बाबा से जिद पे अड़ना, हर बात मानी जाती थी, जिम्मेदारियों से मुक्त थे , खुला आसमान के नीचे बसते थे, खिल उठता था बचपन जब पीपल के पेड़ पर झूला झूलते थे, चोट लगने पर गोद मिलती थी हमारा हर दर्द कम होता तो खुशियां खिलती थी, वह प्यार की थपकी से उम्मीदों को जैसे हवा मिलती थी, वह वलवले जोश से भरे , कुछ कर दिखाने की चाह, लहू में उबाल था के मक्तल ए जाँ की भी ना थी हमें परवाह, ज्यों-ज्यों बचपन खोता गया, त्यों त्यों मुस्कराहट खोती गई, जो खिल उठते थे चेहरे कभी नन्ही मुस्कुराहटों से, अब किसी नजर में वह प्यार नहीं, ना पहले जैसी किलकारियां, डरता रहता मन, उन्मुक्त नीला नभ देख के मन मयूरा ना नाचे देखके वहिशीपन, हैवानियत के संसार में, कहीं खो ना जाएं भोलापन, तृणावर्त प्रवृत्ति का आभास है अब सहमा सा ख़ामोश है बचपन। रचना: 14 25.04.2021 #kkबचपन #kkr2021 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़