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देशद्रोही रात ग्यारह बजे कुछ धमाके की आवाज़ आई, क

देशद्रोही

रात ग्यारह बजे कुछ धमाके की आवाज़ आई,
कल ही आख़िरी F.D तोड़ के नई गाड़ी उठाई,
नीचे जा के देखा तो दिवाली जैसा मंज़र था,
ख़ुशी उनके नारों में, पर नफ़रत बस अंदर था,

शायद अपने ग़ुस्से को ज़ज़्बात बता रहे थे,
उनका कोई अादिल नहीं था।
कुछ लोग तीन सौ मौत पर जश्न मना रहे थे,
मै उसमें शामिल नहीं था।।

👇read full poem #देशद्रोही #vatsa #yqbaba

रात ग्यारह बजे कुछ धमाके की आवाज़ आई,
कल ही आख़िरी F.D तोड़ के नई गाड़ी उठाई,
नीचे जा के देखा तो दिवाली जैसा मंज़र था,
ख़ुशी उनके नारों में, पर नफ़रत बस अंदर था,

शायद अपने ग़ुस्से को ज़ज़्बात बता रहे थे,
देशद्रोही

रात ग्यारह बजे कुछ धमाके की आवाज़ आई,
कल ही आख़िरी F.D तोड़ के नई गाड़ी उठाई,
नीचे जा के देखा तो दिवाली जैसा मंज़र था,
ख़ुशी उनके नारों में, पर नफ़रत बस अंदर था,

शायद अपने ग़ुस्से को ज़ज़्बात बता रहे थे,
उनका कोई अादिल नहीं था।
कुछ लोग तीन सौ मौत पर जश्न मना रहे थे,
मै उसमें शामिल नहीं था।।

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रात ग्यारह बजे कुछ धमाके की आवाज़ आई,
कल ही आख़िरी F.D तोड़ के नई गाड़ी उठाई,
नीचे जा के देखा तो दिवाली जैसा मंज़र था,
ख़ुशी उनके नारों में, पर नफ़रत बस अंदर था,

शायद अपने ग़ुस्से को ज़ज़्बात बता रहे थे,
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