तेरे घर के सामने से गुजरते हैं कभी तो, ये बंद खिड़कियां दिल को बहुत कचोटती हैं, जो कभी खुलती थी हमारे दीदार को, लगता है सालों से यूं ही हतास पड़ी हैं, अब तो तेरा छत पे आना भी नहीं होता है, चुपके से देखकर मुंडेर के पीछे छिप जाना भी नहीं होता है, अब हमारा वहां से गुजरना भी कहां होता है।। #घर#मुंडेर#छिपना#खिड़कियां#हतास#yqbaba#yadidi#hindipoems