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मेरे हृदय और मन-मस्तिष्क पर तुम्हारी स्मृतियों के

मेरे हृदय और मन-मस्तिष्क पर
तुम्हारी स्मृतियों के मौन निमंत्रण ने
कई बार मुझे विक्षिप्त किया है,
मन व शरीर सहम जाता है,
मुख से निकलने वाले सभी स्वर,
कंपन की मुद्रा में होते हैं,
मैं असमर्थ होता हूं, 
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में,
और जब इन मौन रूपी शब्दों को
समझने वाला कोई न हो,
तब,
मैं अपने हर शब्द को गूंगा कर देना चाहता हूं
ताक़ि उन शब्दों की
पुकार को कोई भी सुन न सके... #हृदय #मन #मस्तिष्क #शरीर #कम्पन #निमंत्रण
मेरे हृदय और मन-मस्तिष्क पर
तुम्हारी स्मृतियों के मौन निमंत्रण ने
कई बार मुझे विक्षिप्त किया है,
मन व शरीर सहम जाता है,
मुख से निकलने वाले सभी स्वर,
कंपन की मुद्रा में होते हैं,
मैं असमर्थ होता हूं, 
अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में,
और जब इन मौन रूपी शब्दों को
समझने वाला कोई न हो,
तब,
मैं अपने हर शब्द को गूंगा कर देना चाहता हूं
ताक़ि उन शब्दों की
पुकार को कोई भी सुन न सके... #हृदय #मन #मस्तिष्क #शरीर #कम्पन #निमंत्रण
jitendrapratapsi6047

जीtendra

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