इस पहर, उसके निशां अधूरी चाहत का ले कारवां कहीं ढ़ूढ़ते नई जमीं कहीं चाहते नया जहाँ मुझसे बिना हो मुख़्तला कर गुज़रे कुछ बेवक्त़ सा समझा नहीं अब तलक़ मैं उसके दिल का फलसफ़ा बेरूख़ सी होकर भी कभी कर जाती है वो उन्स सा गुज़र जाता हूँ उन लम्हों में मैं जाने क्यूँ मरहूम सा बेबाक़, बेपरवाह वो करती नहीं कोई गिला इस आस में कि मिल लूँ मैं राह बस तकता रहा इस कशिश को अंत में बस कर दिया खुद से जुदा महसूस बस अब होता है अधूरेपन से श़ब घिरा । "उसके निशां" #YQdidi #YoPoWriMo #SattyMuses