Nojoto: Largest Storytelling Platform

“सिनेमाघर” जब बच्चे हम थोड़ा नादान और उम्र के कच्च

“सिनेमाघर”

जब बच्चे हम थोड़ा नादान और उम्र के कच्चे थे,
परिवार संग घर में या सिनेमाघर जाया करते थे।

पर्दे पीछे की कहानी या किरदार बड़े अच्छे समझते थे,
उन घटित घटनाओं को सच्चे जीवन पहलू से जोड़ते थे।

असल जिंदगी नही बल्कि पर्दे की कहानी को हकीकत समझते थे,
दुख  विरह  प्यार  या  जीत  के  अभिनय  पर  आंसू  बहाते  थे।

अब हम बड़े हो गये फिल्म को मनोरंजन की कहानी समझते हैं,
कितना ही दुख ममता बिछड़न त्याग दिखा दो आंसू नही बहाते हैं।

दरअसल ये मनगढन्त कहानियाँ जीवनयापन से मेल नही खाते हैं,
हाँ  शिक्षा  जरूर  देती  है  मगर  साथ  नही  निभा  पाते  हैं।

इन विचलित कहानियों से वो बहुत रुपये कमा लेते हैं,
लेकिन दर्शक कभी कबार दो घण्टे फिजूल गवाँ लेते हैं। #Cinema #Hall #Movie #Theater #light #Camera #Drama 





#Nojoto #poetry #shayari  Ambika Jha Blank poetry's Monika rathee ऊषा माथुर S.N Gurjar
“सिनेमाघर”

जब बच्चे हम थोड़ा नादान और उम्र के कच्चे थे,
परिवार संग घर में या सिनेमाघर जाया करते थे।

पर्दे पीछे की कहानी या किरदार बड़े अच्छे समझते थे,
उन घटित घटनाओं को सच्चे जीवन पहलू से जोड़ते थे।

असल जिंदगी नही बल्कि पर्दे की कहानी को हकीकत समझते थे,
दुख  विरह  प्यार  या  जीत  के  अभिनय  पर  आंसू  बहाते  थे।

अब हम बड़े हो गये फिल्म को मनोरंजन की कहानी समझते हैं,
कितना ही दुख ममता बिछड़न त्याग दिखा दो आंसू नही बहाते हैं।

दरअसल ये मनगढन्त कहानियाँ जीवनयापन से मेल नही खाते हैं,
हाँ  शिक्षा  जरूर  देती  है  मगर  साथ  नही  निभा  पाते  हैं।

इन विचलित कहानियों से वो बहुत रुपये कमा लेते हैं,
लेकिन दर्शक कभी कबार दो घण्टे फिजूल गवाँ लेते हैं। #Cinema #Hall #Movie #Theater #light #Camera #Drama 





#Nojoto #poetry #shayari  Ambika Jha Blank poetry's Monika rathee ऊषा माथुर S.N Gurjar
amitrawat6080

Amit Rawat

New Creator