मंजिल-ए-सफ़र में एक मोड़ पे बाजार-ए-इश्क आया, फिर हमें भी कुछ खरीदने का ख़्याल आया, और नवाबों की तरह गए थे हम इसमें, फिर कंगाल होकर ये मुसाफ़िर बाहर आया, ....................दीपक मंडल #मोहोबत