अदृश्य नेत्र को खोलकर जीवन-दृष्टि से देखो महामानव तुम ही हो तुम ही हो सर्वशक्तिमान बहानों को दफ़न कर के प्रथम क़दम रखकर के क़दम दर क़दम बढ़ाते चलो जब तक है तुझमें जान जीवन रूपी सरिता के तट रूपी सुख और दुःख के भाव में डूबकर उसकी मूल धारा को भूलकर हो किसकी प्रतीक्षा में लीन श्रीमान तेरा मानव का होना और इस स्वर्ग रूपी पृथ्वी पर जन्म का लेना और खो जाना इस भीड़ में नहीं हैं यह तेरी पहचान #insparation #motivation #apnavichar #anandkiep #poetry #poem #kavita #padya