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उलझती जुल्फ़ें बहकते हम। थिरकते कदम मचलता यह मन।

उलझती जुल्फ़ें बहकते हम।
थिरकते कदम मचलता यह मन।

बहती हवा उड़ती तेरी जुल्फ़।
आज लेने दो तुम मेरी आँखों को भी लुफ़्त।

चांँद कैसे मुखड़े को ढकती ये जुल्फ़ें तेरी।
कर रही दीवाना मुझको कातिल अदायें ये तेरी। 

मौसम सुहाना ना जाओ हमसे दूर तुम।
क्यों करती तुम मुझ पर इतना सितम।

बहके बहके हो तुम बहके बहके से हैं हम।
आज तो करा दो रसपान अपने होठों से प्यासे हैं तुम।

क़रीब आकर मेरे हर ख्वाहिश पूरी कर दो तुम।
जाने जिगर जाने तमन्ना खूबसूरत हमसफर हो तुम।
 ♥️ Challenge-905 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
उलझती जुल्फ़ें बहकते हम।
थिरकते कदम मचलता यह मन।

बहती हवा उड़ती तेरी जुल्फ़।
आज लेने दो तुम मेरी आँखों को भी लुफ़्त।

चांँद कैसे मुखड़े को ढकती ये जुल्फ़ें तेरी।
कर रही दीवाना मुझको कातिल अदायें ये तेरी। 

मौसम सुहाना ना जाओ हमसे दूर तुम।
क्यों करती तुम मुझ पर इतना सितम।

बहके बहके हो तुम बहके बहके से हैं हम।
आज तो करा दो रसपान अपने होठों से प्यासे हैं तुम।

क़रीब आकर मेरे हर ख्वाहिश पूरी कर दो तुम।
जाने जिगर जाने तमन्ना खूबसूरत हमसफर हो तुम।
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