ना जाने कबसे अपने लफ्ज़ाें काे सुख़न में पिराेती आयी हूँ। मगर काेई मुझे समझ ना पाया मेरे लफ्ज़ पढ़के भी। मगर ना काेई शिक़वा है किसीसे आैर ना हि काेई ख़लिश। अब ताे मैं सवाल पूछ़ती हूँ खुदकाे खुदी से, अब ये लिखना भी वाजिब हाेगा ©Manisha Dongre Kulkarni #वाजिब #manishadongrekulkarbi #मुक्तछंदmdk #1stNojotoKavita #MDK #manya Pic credit : Manimau