लौटकर फिर आईना देखा नहीं हमने यूँ अपनी तस्वीर खुद मिटाई हमने ख़त्म हुआ जब शोर शहनाई का वो ही पुरानी धुन बजाई हमने किसी बरस होरी संग खेली हमने फिर तमाम उम्र ख़ाक उड़ाई हमने भीड़ ने हज़ारों दफ़े आईना दिखाया हमको सितम रहा कोई सूरत नहीं पहचानी हमने शायद रब से ज़्यादा सजदा किया उसका ख़ुद अपनी रस्में बाद इसलिए निभाई हमने #poetry