" कहीं वो मिलते की खाक छानने बैठे हैं , उसकी यादों की बारात लेकर आते , जशन खामोशि की चहल कर रही , ऐसे में तुम कहीं मिल भी नहीं रहे . " --- रबिन्द्र राम " कहीं वो मिलते की खाक छानने बैठे हैं , उसकी यादों की बारात लेकर आते , जशन खामोशि की चहल कर रही , ऐसे में तुम कहीं मिल भी नहीं रहे . " --- रबिन्द्र राम #खाक