भरे हुए हैं खुद से ही बस, एक अदद श्रोता चाहें सब। भरता जाए, छलके ना पर, ऐसा इक लोटा चाहें सब। सुनता जाए, धुनता जाए सिर को अपने बेशक जितना, कान रहें जागें उसके, पर जिव्हा को सोता चाहें सब। "ये भी सुन और वो भी सुन, पर माथे पर ना डाल शिकन" पका पका कर के ही पक्की यारी का ओहदा चाहें सब। आधी उसके अंदर जाएं, आधी फ़िसलें दाएं बाएं, लाद यूं बोझा, करें सवारी, इक शरीफ़ खोता (गधा)चाहें सब। जब तक सांस चले श्रोता की तब तक इनकी ज़ुबां चले। साथ में हामी भरती उसकी गरदन का योगा चाहें सब। इनकी पीड़ा, इनके झगड़े, इनके रिश्ते, इनके पचड़े, सुनकर जो बहे कलकल हमदर्दी का इक सोता चाहें सब #अंजलिउवाच #YQdidi #श्रोता #वक्ता #व्यंग्य