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गीत: बचपन के पलछिन भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस

गीत: बचपन के पलछिन

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा #raining 
भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था
गीत: बचपन के पलछिन

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा #raining 
भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था