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हम कहाॅं अपनी किस्मत फिर से तुम संग लिख रहे...!

हम कहाॅं अपनी किस्मत 
फिर से तुम संग लिख रहे...! 
तुम भी ना! कहते हो, इस 
स्याही का रंग पसंद नहीं...! 
यह ऊब नही है, कह दो ना...
आज साफ-साफ सही-सही..! 
शब भर बेसब्र उसी गली में हम...
एक तुम्हारी, 'जान!' राह तकते खड़े। 
हर आग, हर ज़लज़ले से बहुत बड़ा 
है तुम्हारा मौन, तौबा! जो यूॅं चुप रहे!  हम कहाॅं अपनी किस्मत 
फिर से तुम संग लिख रहे...! 

तुम भी ना! कहते हो, इस 
स्याही का रंग पसंद नहीं...! 

यह ऊब नही है, कह दो ना...
आज साफ-साफ सही-सही..!
हम कहाॅं अपनी किस्मत 
फिर से तुम संग लिख रहे...! 
तुम भी ना! कहते हो, इस 
स्याही का रंग पसंद नहीं...! 
यह ऊब नही है, कह दो ना...
आज साफ-साफ सही-सही..! 
शब भर बेसब्र उसी गली में हम...
एक तुम्हारी, 'जान!' राह तकते खड़े। 
हर आग, हर ज़लज़ले से बहुत बड़ा 
है तुम्हारा मौन, तौबा! जो यूॅं चुप रहे!  हम कहाॅं अपनी किस्मत 
फिर से तुम संग लिख रहे...! 

तुम भी ना! कहते हो, इस 
स्याही का रंग पसंद नहीं...! 

यह ऊब नही है, कह दो ना...
आज साफ-साफ सही-सही..!
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