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आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें।। उ

आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें।।
उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे।।
बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई। जनु मधु मदन मध्य रति लसई।।
उपमा बहुरि कहउँ जियँ जोही। जनु बुध बिधु बिच रोहिनि सोही।।
प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।।
सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ।।
राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई।।
खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं।।

जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ।
भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ।।123
~ श्रीरामचरितमानस

©Ganesh Singh Jadaun #श्रीरामचरितमानस
आगे रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें।।
उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे।।
बहुरि कहउँ छबि जसि मन बसई। जनु मधु मदन मध्य रति लसई।।
उपमा बहुरि कहउँ जियँ जोही। जनु बुध बिधु बिच रोहिनि सोही।।
प्रभु पद रेख बीच बिच सीता। धरति चरन मग चलति सभीता।।
सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलहिं मगु दाहिन लाएँ।।
राम लखन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई।।
खग मृग मगन देखि छबि होहीं। लिए चोरि चित राम बटोहीं।।

जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ।
भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ।।123
~ श्रीरामचरितमानस

©Ganesh Singh Jadaun #श्रीरामचरितमानस