माँ... ह! अब मैं इतनी बड़ी हो गयी क्या? वो बचपन की सोच, लाती क्यों नहीं, मैं तेरे लिए ...., बोझ हूँ क्या? पर मैं....! खुद को बोझ मानती क्यों नहीं । माँ.. ह ! घर में ही रहना, ठीक है क्या? बाहर जाना, ठीक क्यों नहीं, घर में ही काम करना , ठीक है क्या? बाहर काम करना , ठीक क्यों नहीं। माँ... ह! लड़की सहेली बनें तोह...! ठीक हैं क्या? लड़का दोस्त बनें...तोह! ठीक क्यों नहीं, सीधी - सादी हूँ, ठीक है क्या? मॉडल बना, ठीक क्यों नहीं । माँ.. ह ! गाँव की हूँ, गाँव की ही, सोच रखूँ क्या? शहर की ओर ....., निहारना ठीक क्यों नहीं, कुर्ती - लेगिंग , सलवार..., पह्हना ठीक है क्या? जींस- टॉप पह्हना , ठीक क्यों नहीं। माँ... ह ! शादी करना जरूरी है क्या? अकेले रहना , जरूरी क्यों नहीं, सात फेरें लेना, जरूरी है क्या? सात सपने देखना, जरूरी क्यों नहीं । माँ.... ह! किसी के लिए...! सस्ता बनाना ठीक है क्या? खुद को कीमती बनाना, ठीक क्यों नहीं, लड़की हूँ....! जमीन तक ही, सीमित ! ठीक हैं क्या? आसमां में उड़ना ठीक क्यों नहीं। माँ... ह! मैं एक नारी हूँ, अब की जलती चिंगारी हूँ, मुझे ओर जलने दो , माँ! इस चिंगारी को , और उड़ने दो माँ! इस चिंगारी को , और उड़ने दो माँ! ©My Poetry and learning Lovers #Thik_hai_kya #manoramaShaw #WatchingSunset