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रात के आँगण मे जब सफ़ेद चाँदणी बिखरती है नींद वही

रात के आँगण मे जब सफ़ेद चाँदणी बिखरती है
नींद वही ठहर जाती है, सुबह दबे पाँव आती है

कभी बादलो के पिछे, कभी शुभ्र चाँदणी के संग
रजनीश की आँख-मिचौली मन को ललचाती है

गर्मीयों की छुट्टीओं में अक्सर ऐसा होता है, जब
बोरा-बिस्तरा लेकर हम सब छत पर सोने जाते है

रात का वो सफ़ेद ऊजाला तन-बदन पर छाता है
सपनो की मिठी कुँजी लिए पिछला पहर आता है

सोते है ऐसे की फिर जगने की नही होती इच्छा
लेकीन सूरज की तेज किरणे और न सोने देती है ये ख़ूबसूरत नज़ारे
करते हैं कुछ इशारे 
आओ, आओ रात के आँगन में
#रातकाआँगन #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
रात के आँगण मे जब सफ़ेद चाँदणी बिखरती है
नींद वही ठहर जाती है, सुबह दबे पाँव आती है

कभी बादलो के पिछे, कभी शुभ्र चाँदणी के संग
रजनीश की आँख-मिचौली मन को ललचाती है

गर्मीयों की छुट्टीओं में अक्सर ऐसा होता है, जब
बोरा-बिस्तरा लेकर हम सब छत पर सोने जाते है

रात का वो सफ़ेद ऊजाला तन-बदन पर छाता है
सपनो की मिठी कुँजी लिए पिछला पहर आता है

सोते है ऐसे की फिर जगने की नही होती इच्छा
लेकीन सूरज की तेज किरणे और न सोने देती है ये ख़ूबसूरत नज़ारे
करते हैं कुछ इशारे 
आओ, आओ रात के आँगन में
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