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इतना खुश हूँ के खुद को अब बदज़ात समझता हूँ । ख़ुदी

इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।
ख़ुदी को खामोश करने, 
दुखों से गले मिलता हूँ ।।

क्योंकि वो रोती नहीं
हँसती सुनाई देती है ।
उन आंसुओं में शायद
हस्ती दिखाई देती है ।

मैं तो हाथ थामे 
सड़क पर आगे बढ़ाता हूँ ।
खुले मैदानों में 
पीछे हट जाता हूँ ।

पहले था घना दरख़्त
आज भी उतना ही तना हूँ ।
उनकी छाँव न है मेरी,
पर सहारा बना हूँ । Part 4 of गाथा-ए-दरख़्त

Click on #GathaEDarakht for more parts.

छड़ी

इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।
इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।
ख़ुदी को खामोश करने, 
दुखों से गले मिलता हूँ ।।

क्योंकि वो रोती नहीं
हँसती सुनाई देती है ।
उन आंसुओं में शायद
हस्ती दिखाई देती है ।

मैं तो हाथ थामे 
सड़क पर आगे बढ़ाता हूँ ।
खुले मैदानों में 
पीछे हट जाता हूँ ।

पहले था घना दरख़्त
आज भी उतना ही तना हूँ ।
उनकी छाँव न है मेरी,
पर सहारा बना हूँ । Part 4 of गाथा-ए-दरख़्त

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इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।
calmkazi6439

CalmKazi

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