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भाषा साहित्य ही नहीं सभ्यता के विकास की घुरी होती

भाषा साहित्य ही नहीं सभ्यता के विकास की घुरी होती है।वह संस्कृतियों की जननी और संस्कारों का आधार होती है।भारतीय जनमानस में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।अभिव्यक्ति की अद्भुद शक्ति जो देश विदेश की कई बोली और भाषाओं को अपने आप में समेंटे निरन्तर बढ़ रही है।वहीं अपनी जन्मदात्री भाषा संस्कृत और अपने मूल स्वरूप को खो रही है।संस्कृत तो केवल स्कूल तक ही सिमट कर रह गई और उसके साथ ही हमारी पुरानी संस्कृति ओझल हो रही है।शब्दकोश के नवीनीकरण में रुकावट आई तो दूसरी भाषाओं के शब्दों का उपयोग बढ़ा।भले ही हम अभी इस प्रभाव को देख नहीं पा रहे हों लेकिन यह भी सच है कि हमारी भाषा ने अपने स्वरूप को खोया है।हमें उसके स्वाभाविक माधुर्य को बचाए रखने के लिए नए प्रयास करने होंगे। ♥️ Challenge-691 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ :)
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©दिव्यांशु पाठक
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Collaborating with कोरा काग़ज़
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©दिव्यांशु पाठक
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