फ़ज़ा में घुल के भी ख़ुश्बू मेरी मलूल हुई मैं अपने आस्ताँ से निकला मुझसे भूल हुई खड़ा हुआ था कि आसेब आ गिरा मुझपर मेरी बुलंदी को तो ख़ाक ही क़ुबूल हुई मक़ाम-ए-इश्क़ को पहुँचा लहूलुहान हुआ बदन निढाल पड़ा है ख़ता वसूल हुई - Abhishek Singh ©Abhishek singh Asim #फ़ज़ा में घुल के भी ख़ुश्बू मेरी मलूल हुई #AbhishekAsim