इत्तफा़क़ रखूॅं इस जहाॅं से, लाज़मी ये है नहीं, जिस से बनी हैं रस्मेंं, उस मिट्टी का मैं नहीं। बयाॅं करने दिल की बात, उससे मुलाकात करता हूॅं, अकेलापन सा जब लगता है, मैं चाॅंद से बात करता हूॅं।। यहाॅंं बस अपनी सलाह को, साहिल मानता है हर कोई, खुद का पता नहीं, और सबका मुस्तक़बिल जानता है हर कोई। तलबगार नहीं हूॅं, तो खुलकर सबसे दो दो हाथ करता हूॅं, अकेलापन सा जब लगता है, मैं चांद से बात करता हूॅं।। उम्मीदों के आसमाॅं में, दिखता है सभी को वोही, क्यूॅं पूजती है उसे ये दुनियाॅ़ं, उससे ये पूछूं क्यूॅं नहीं? क्या कम रह गई हममें बात, ये सवालात हर रात करता हूॅं, अकेलापन सा जब लगता है, मैं चांद से बात करता हूॅं।। ©Arc Kay #Shaayavita #chaand #chaandsebaatein #ChaandseGuftgu #akelapan #मैं_और_मेरी_तन्हाई #मैं_और_मेरे_जज़्बात #मैं_अनबूझ_पहेली #moonbeauty