दिल में अरमान लिए, आंखों में सपना सजाएं एक दिन निकल पड़ी थी मैं। मां की आंखों में अश्रु, पिता की आंखों में दर्द छोड़ कर चल पड़ी थी मैं।। जो ख़्वाब देखे थे मेरे अपनों ने मिलकर, उसको पूरा करने का प्रण किया, जिसके खातिर घर आंगन, परिवार गांव सबको अकेला छोड़ चली थी मैं।। कोई नहीं था, वीरान शहर में मैं पड़ी अकेली, बस मेरे सपनों का बारात था, पूरा करना है बस सपनों को, अपना सुख दुःख सब कुछ छोड़ चली थी मैं।। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-83 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।