हरी वाली पहनेंगी सोम को मंगल को लाल से मधुर खनखन होगा महज सहज सुकर साधारण सी सुंदरता है जिसकी प्रतीक्षा में हर छन तड़़पता दर्पन होगा सुन ओ चूड़ीवाले, न उलझाओ मुझे इन महँगी-महँगी कुड़ियों में बड़े सस्ते से ख्वाब उसके तुम तो बस बताओ भाव इन चूड़ियों के वैसे तो आदत है उसकी दो-दो सब मिलाकर पहनने की मगर सप्ताह का कोई भी दिन न जा पाये रीता इसलिए चूड़ियाँ तुम सातों रंग की बाँध दो नजरें उसकी भी निरंतर बाट में होंगी और सूरज मेरा भी शनैः शनैः ढ़लने जा रहा साँझ को सुन ओ चूड़ीवाले,न उलझाओ अब बटोही को महँगी नुपुर की लड़ियों में कहीं यहीं न ढ़ल जाये शाम, तुम जरा जल्दी बताओ भाव इन चूड़ियों के शृंगार में चूडिय़ां सितारों का काम करती है! सुकर- सरल छन- पल, क्षण कुड़ी- सोने या हीरे का गले का हार बटोही- पथिक, राहगीर नुपुर - पाजैब